राजस्थान जहां वीर भूमि के रूप मेँ प्रसिध्द है वहां तपोभूमि के रूप मेँ भी इसका स्थान बहुत ऊंचा है । इसी भूमि पर मीरां जैसी महान् विभूतियां हुई थी । आज एक ऐसे ही संत के विषय में कुछ लिख कर लेखनी एंव मन पवित्र करने का प्रयास किया गया है ।
राजस्थान में जोधपूर जिले के फलौदी तहसील की सरहद में एक छोटीसी ग्रामीण बस्ती है । जिसको लोग चाखू गावँ के नाम से जानते हैँ । यहीँ पर मरूस्थल के महान सतं का प्राक्टय एक क्षत्रिय परिवार मेँ हुआ था । आप संत श्री 108 श्री जीयारामजी महाराज के नाम से विख्यात हुए हैँ । आपने अपना जीवन अपने सद्गरू संत श्री अनारामजी के सानिध्य मेँ साधना मेँ ही व्यतीत किया एवं इसी समय मेँ विशाल वाणी संग्रह की रचना की । आपका सम्पूर्ण जीवन काल एक मात्र भगवद् भजन मेँ ही व्यतीत हुआ एवं कई चमत्कार पूर्ण घटनाएं आपके जीवन मेँ हुई ।
ramjiram
Tuesday, November 1, 2011
Wednesday, October 26, 2011
शिव प्रार्थना
जय प्रभु शंकर दीनदयाला, प्रभुजी मोहे करो निहाला ।।
सत्य सन्तोष शील मोहे दीजे, मोरे दोष दूर सब कीजे ।।
दया नम्रता मन मेँ आवे, मन भोगन में कबहु न जावे ।
पर पीङा से चित हटाओ, पाप कर्म से मोहे बचाओ ।
निर्मल चित करो प्रभु मोरा, निश दिन भजन करु मैँ तोरा ।
यही कामना मन मेँ स्वामी, पूरण कर प्रभु अन्तर्यामी ।
जब लग कृपा न तुम्हारी होवे, तब लग वृथा जन्म नर खोवे ।
माया के वश पङा भूलाना, बार-बार दुःख पावे नाना ।
बिन सन्तोष न सुख कहु होई, भटकि-भटकि नर जीवन खोई ।
अन्तकाल रो-रो पछितावै, गया वक्त फिर हाथ न आवे ।
भोग शोक की खनी बखाने, तिनसोँ मन कबहु न अघाने ।
ग्लानि योग्य जो वस्तु सारी, तिनसोँ प्रेम मूढ को भारी ।
छोङा चाहे न कबहुँ जिनको, क्षण मेँ काल छुङावे तिनको ।
आपा छोङ जो तुमको ध्यावे, सो नर सहज मुक्ति को पावे ।
काम क्रोध मद लोभ घनेरे, प्रभुजी जग मेँ बैरी मेरे ।
भगवान इनसे मोहे बचावो, निज चरणोँ का दास बनाओ ।
और न जग मेँ ऐसा कोई, करुणा करे दी पर जोई ।
दुःख मोचन है नाम तिहारो, मैँ हूँ जग मेँ अति दुखियारो ।
भव सागर है अतिशय घोरा, देख-देख मन डरपत मोरा ।
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सत्य सन्तोष शील मोहे दीजे, मोरे दोष दूर सब कीजे ।।
दया नम्रता मन मेँ आवे, मन भोगन में कबहु न जावे ।
पर पीङा से चित हटाओ, पाप कर्म से मोहे बचाओ ।
निर्मल चित करो प्रभु मोरा, निश दिन भजन करु मैँ तोरा ।
यही कामना मन मेँ स्वामी, पूरण कर प्रभु अन्तर्यामी ।
जब लग कृपा न तुम्हारी होवे, तब लग वृथा जन्म नर खोवे ।
माया के वश पङा भूलाना, बार-बार दुःख पावे नाना ।
बिन सन्तोष न सुख कहु होई, भटकि-भटकि नर जीवन खोई ।
अन्तकाल रो-रो पछितावै, गया वक्त फिर हाथ न आवे ।
भोग शोक की खनी बखाने, तिनसोँ मन कबहु न अघाने ।
ग्लानि योग्य जो वस्तु सारी, तिनसोँ प्रेम मूढ को भारी ।
छोङा चाहे न कबहुँ जिनको, क्षण मेँ काल छुङावे तिनको ।
आपा छोङ जो तुमको ध्यावे, सो नर सहज मुक्ति को पावे ।
काम क्रोध मद लोभ घनेरे, प्रभुजी जग मेँ बैरी मेरे ।
भगवान इनसे मोहे बचावो, निज चरणोँ का दास बनाओ ।
और न जग मेँ ऐसा कोई, करुणा करे दी पर जोई ।
दुःख मोचन है नाम तिहारो, मैँ हूँ जग मेँ अति दुखियारो ।
भव सागर है अतिशय घोरा, देख-देख मन डरपत मोरा ।
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